JIPMER MBBS-BAMS Course: केंद्र सरकार अब एलोपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों को एक शैक्षणिक छत के नीचे लाने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।
इसी क्रम में, पुडुचेरी स्थित जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER) में देश का पहला एकीकृत MBBS-BAMS कोर्स शुरू करने की योजना बनाई गई है।
इसकी जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री और आयुष (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री प्रतापराव जाधव ने दी। उन्होंने बताया कि यह कोर्स अभी प्रारंभिक (कॉन्सेप्चुअल) चरण में है और इसके लिए एक नया सिलेबस तैयार किया जा रहा है।
चिकित्सा शिक्षा में बड़ा बदलाव
सरकार की इस पहल का उद्देश्य आधुनिक चिकित्सा प्रणाली (एलोपैथी) और भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली (आयुर्वेद) के बीच समन्वय स्थापित करना है। इससे पहले भी सरकार ने इस दिशा में कई प्रयास किए हैं। वर्ष 2022 में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने सभी मेडिकल कॉलेजों में “इंटीग्रेटिव मेडिसिन रिसर्च विभाग” स्थापित करना अनिवार्य कर दिया था।
2023 में MBBS पाठ्यक्रम की नींव रखने वाले फाउंडेशन कोर्स में भी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों (AYUSH) और चिकित्सा इतिहास की जानकारी देने का उद्देश्य जोड़ा गया था। इसके अलावा, MBBS पाठ्यक्रम में भारतीय चिकित्सा प्रणाली को वैकल्पिक विषयों के रूप में शामिल किया गया था।
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‘मिक्सोपैथी’ को लेकर विवाद
सरकार की इस योजना को लेकर मेडिकल जगत में तीखी प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि इससे ‘मिक्सोपैथी’ को बढ़ावा मिलेगा और वर्ष 2030 तक देश में केवल ‘हाइब्रिड डॉक्टर’ ही होंगे। उनका कहना है कि एलोपैथी और आयुर्वेद को मिलाकर पढ़ाना वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं है।
JIPMER का विस्तार और नए अस्पताल का निर्माण
JIPMER निदेशक के अनुसार, संस्थान अपने कराईकल कैंपस में 470 बेड वाले अस्पताल का निर्माण कर रहा है। यह निर्माण कार्य 2027 तक पूरा होने की उम्मीद है, जबकि बाह्य रोगी सेवाएं जनवरी 2027 से शुरू हो जाएंगी।
इसके अतिरिक्त, केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पुडुचेरी सरकार द्वारा प्रस्तावित नए मेडिकल कॉलेज की स्थापना की योजना पर भी विचार किया जा रहा है और इस पर जल्द ही निर्णय लिया जाएगा।
निष्कर्ष
भारत में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में यह बदलाव ऐतिहासिक साबित हो सकता है, यदि इसे वैज्ञानिक आधार और सावधानीपूर्वक लागू किया जाए। हालांकि, यह देखना बाकी है कि यह प्रयोग चिकित्सा की गुणवत्ता और डॉक्टरों की दक्षता पर क्या प्रभाव डालता है।
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