SC on Expensive Medicine: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डॉक्टरों से अपने पर्चे में केवल जेनेरिक दवाएं लिखवाने के निर्देश दिए जाने चाहिए। कोर्ट की यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान आई जिसमें दवा कंपनियों की मार्केटिंग पद्धतियों को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाए जाने की मांग की गई थी।
यह याचिका “फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया” नाम की संस्था ने 2021 में दाखिल की थी। संस्था ने आरोप लगाया था कि कोविड काल में डोलो 650 दवा को बढ़ावा देने के लिए कंपनी ने डॉक्टरों को उपहार और विदेश यात्राएं जैसी सुविधाएं दीं। याचिका में दावा किया गया कि इसके लिए करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
SC on Expensive Medicine: यूनिफॉर्म कोड को कानून बनाने की मांग
याचिकाकर्ता संस्था ने कोर्ट (SC on Expensive Medicine) को बताया कि सरकार ने “यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज” (UCPMP) तैयार किया है, जो दवा कंपनियों को डॉक्टरों को तोहफे या लाभ देने से रोकता है। हालांकि, इस कोड को अब तक कानूनी रूप नहीं दिया गया है, जिससे इस पर अमल नहीं हो रहा।
राजस्थान मॉडल की सराहना
जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि यदि पूरे देश में डॉक्टरों को ब्रांडेड की जगह जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए बाध्य किया जाए तो इस समस्या का समाधान हो सकता है। उन्होंने (SC on Expensive Medicine) राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसके बाद वहां डॉक्टरों को ब्रांडेड दवाएं लिखने से रोका गया।
क्या होती हैं जेनेरिक और ब्रांडेड दवाएं?
दवाएं उनके सॉल्ट (chemical composition) के आधार पर बनाई जाती हैं। जब कोई कंपनी इन्हें अपने नाम से बेचती है, तो वे ब्रांडेड दवाएं कहलाती हैं। वहीं, जेनेरिक दवाएं उसी सॉल्ट के साथ बिना किसी नाम या हल्के ब्रांड के तहत बेची जाती हैं। इनमें प्रभावशीलता वही होती है, लेकिन कीमतें काफी कम होती हैं।
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क्या जेनेरिक दवाओं का असर कम होता है?
दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के डॉ. अजित कुमार के अनुसार, अगर सॉल्ट एक जैसा है, तो दवा का असर ब्रांडेड और जेनेरिक दोनों में समान होता है। उन्होंने बताया कि जेनेरिक दवाएं न केवल सस्ती होती हैं बल्कि असरदार भी हैं। हालांकि, इनका सेवन डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।
डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं क्यों लिखते हैं?
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. कमलजीत सिंह ने बताया कि दवा कंपनियां ब्रांडेड दवाओं का प्रचार-प्रसार ज्यादा करती हैं। इससे डॉक्टरों को इन्हीं दवाओं की जानकारी अधिक होती है। कई बार मरीज खुद भी ब्रांडेड दवाएं मांगते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे ज्यादा असरकारक होंगी, जबकि यह धारणा गलत है।
जेनेरिक बनाम ब्रांडेड: कीमतों का अंतर कितना?
- बीटाडीन पाउडर: जेनेरिक ₹30 | ब्रांडेड ₹81
- टेल्मिसर्टन (हाइपरटेंशन): जेनेरिक ₹40 | ब्रांडेड ₹200+
- स्किन ऑइंटमेंट: जेनेरिक ₹40 | ब्रांडेड ₹180+
- मेटफॉर्मिन (डायबिटीज): जेनेरिक पत्ता आधे दाम में
- एटोरवास्टेटिन (कोलेस्ट्रॉल): जेनेरिक ₹23.67 | ब्रांडेड ₹175.50
- लेवोथाय्रॉक्सिन (थाइरॉइड): जेनेरिक ₹90 | ब्रांडेड ₹170
अगली सुनवाई जुलाई में, रिपोर्टों पर विचार जारी
सरकार (SC on Expensive Medicine) की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि इंडियन मेडिकल काउंसिल पहले ही डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने के निर्देश दे चुकी है। स्वास्थ्य मामलों की संसदीय समिति ने भी इस पर रिपोर्ट दी है, जिसे लागू करने पर विचार चल रहा है। अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।
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