CDSCO: किसी भी देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की नींव उसके दवा नियामक संस्थानों पर टिकी होती है। भारत में यह ज़िम्मेदारी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation – CDSCO) के कंधों पर है।
यह संस्था देशभर में दवाओं की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता की निगरानी करती है। हर महीने CDSCO विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दवा सैंपल लेकर उन्हें विश्लेषण के लिए प्रयोगशालाओं में भेजती है और उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करती है।
CDSCO द्वारा मई 2025 में जारी की गई मासिक रिपोर्ट के अनुसार:
- कुल 1,321 दवा सैंपल का परीक्षण किया गया।
- इनमें से 58 दवाओं के बैच गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गए।
- एक सैंपल को “Misbranded” के रूप में चिह्नित किया गया।
- बाकी 1,262 सैंपल मानक गुणवत्ता के पाए गए।
यह आंकड़ा स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है, क्योंकि इन फेल बैचों में अधिकांश दवाएं रोज़मर्रा की चिकित्सा में प्रयोग की जाती हैं।
कौन-कौन सी दवाएं शामिल हैं?
गुणवत्ता परीक्षण में फेल हुए बैचों में निम्नलिखित प्रकार की दवाएं पाई गई हैं:
- एंटीबायोटिक्स:
- Amoxicillin
- Cefixime
- Azithromycin
- दर्द निवारक और फीवर कंट्रोल दवाएं:
- Paracetamol
- Aceclofenac
- Diclofenac Sodium
- गैस्ट्रिक समस्याओं की दवाएं:
- Pantoprazole
- Ranitidine
- Domperidone
- मनःचिकित्सक दवाएं और इंजेक्शन:
- Ondansetron
- Chlorpheniramine Maleate
- Methylcobalamin
- टीकाकरण और आंख-कान की बूंदें भी शामिल हैं।
इनमें से कई दवाएं जीवन रक्षक (Life Saving Drugs) के श्रेणी में आती हैं, जो यदि मानक के अनुसार न हों, तो गंभीर दुष्प्रभाव पैदा कर सकती हैं।
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राज्यवार सैंपल और फेल बैचों का वितरण
फेल हुए दवा बैच पूरे देश से सैंपल किए गए थे। जिन राज्यों से अधिक संख्या में निम्न-गुणवत्ता वाले बैच सामने आए, वे हैं:
- हिमाचल प्रदेश: दवा निर्माण हब होने के कारण यहाँ से सबसे अधिक फेल बैच सामने आए।
- उत्तर प्रदेश और हरियाणा: कई कंपनियों के बैच गुणवत्ता जांच में फेल हुए।
- कर्नाटक और तेलंगाना: फार्मा उद्योग के गढ़ माने जाने वाले इन राज्यों से भी दोषपूर्ण बैच मिले।
- दिल्ली और राजस्थान: प्रमुख अस्पतालों और डिस्ट्रीब्यूशन केंद्रों से सैंपल फेल हुए।
गुणवत्ता जांच में फेल का अर्थ क्या है?
जब कोई दवा “Not of Standard Quality (NSQ)” घोषित की जाती है, तो इसका अर्थ यह होता है कि वह:
- निर्धारित Active Pharmaceutical Ingredient (API) की मात्रा में कमी या अधिकता रखती है।
- उसमें विलयन, रंग, गंध, स्थिरता में दोष पाया गया।
- वह निर्धारित समय तक प्रभावी नहीं रहती (Shelf life की समस्या)।
- वह अशुद्धियों (Impurities, Heavy Metals आदि) से ग्रसित है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव और जोखिम
NSQ दवाएं मरीज़ों के लिए अत्यंत खतरनाक हो सकती हैं:
- बीमारी का सही उपचार नहीं होता, जिससे रोग और जटिल हो सकता है।
- रोगाणुरोधक (Antibiotic) दवाओं की NSQ स्थिति एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस पैदा करती है।
- बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुज़ुर्गों के लिए ये और भी जानलेवा हो सकती हैं।
- किसी टीके या इंजेक्शन की खराब गुणवत्ता से एलर्जी, रिएक्शन या मृत्यु तक हो सकती है।
फार्मेसियों और अस्पतालों के लिए चेतावनी
CDSCO ने राज्य औषधि नियंत्रकों को निर्देश दिया है कि वे:
- सभी अस्पतालों और दवा दुकानों को सूचित करें कि ये बैच बाज़ार से वापस लिए जाएं।
- इन दवाओं की रिटेल और स्टॉकिस्ट लेवल पर पहचान कर तत्काल जब्ती की कार्रवाई करें।
- आम नागरिकों को बैच नंबर जांच कर सतर्क रहने के लिए प्रेरित करें।
CDSCO की कार्रवाई और दायित्व
CDSCO केवल सैंपल परीक्षण करता है, लेकिन उत्पादन पर सीधे प्रतिबंध लगाने के लिए राज्य औषधि नियंत्रकों और ड्रग इंस्पेक्टर्स की भूमिका प्रमुख होती है। संस्था ने दोषपूर्ण बैचों को लेकर नोटिस जारी किए हैं और संबंधित कंपनियों से स्पष्टीकरण मांगा है।
इसके अतिरिक्त, कुछ मामलों में प्रोसेक्यूशन या लाइसेंस सस्पेंशन की कार्रवाई भी की जा सकती है, यदि दोष गंभीर पाया जाए।
क्या करें आम नागरिक?
- अपने द्वारा ली गई दवाओं के बैच नंबर ज़रूर जांचें।
- कोई संदिग्ध दवा दिखे या असामान्य प्रभाव हो तो तुरंत डॉक्टर को सूचित करें।
- अपनी दवा केवल प्रमाणित फार्मेसी से ही खरीदें।
- स्थानीय ड्रग कंट्रोलर ऑफिस में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
नीति सुधार और सुझाव
- फार्मा कंपनियों पर कड़े दंडात्मक प्रावधान लागू हों।
- हर दवा में QR कोड आधारित ट्रेसिंग सिस्टम लागू किया जाए।
- सरकारी अस्पतालों और स्टोरों में भी बैच स्कैनर की व्यवस्था हो।
- छोटे फार्मा निर्माताओं को GMP (Good Manufacturing Practice) सख्ती से पालन कराना चाहिए।
निष्कर्ष
CDSCO की मई 2025 की रिपोर्ट यह साबित करती है कि भारत की दवा आपूर्ति श्रृंखला में अब भी गुणवत्ता को लेकर गंभीर खामियां मौजूद हैं। यह एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट का संकेत है, यदि इस पर समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई तो परिणाम भयावह हो सकते हैं।
सरकार, औषधि नियंत्रण एजेंसियाँ, फार्मा उद्योग और आम जनता सभी को मिलकर इस चुनौती का समाधान करना होगा ताकि भारत की चिकित्सा प्रणाली पर लोगों का भरोसा कायम रह सके।
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