Medical Device Safety: राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC) ने चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता को लेकर एक अहम फैसला लिया है। अब अगर किसी मरीज को घटिया या खराब गुणवत्ता वाले चिकित्सा उपकरणों से नुकसान होता है, तो जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
इसके तहत देशभर के सभी मेडिकल कॉलेजों को निर्देश (Medical Device Safety) दिए गए हैं कि वे अपने संस्थानों में चिकित्सा उपकरणों की निगरानी के लिए एक विशेष कमेटी का गठन करें।
एनएमसी के सचिव डॉ. राघव लंगर ने कहा, “अब इलाज के साधनों पर भी उतनी ही निगरानी जरूरी है, जितनी इलाज पर।” उन्होंने बताया कि यह समिति हर शिकायत को दर्ज करेगी और उसकी जानकारी भारतीय औषध भेषज आयोग (Indian Pharmacopoeia Commission) को भेजेगी। इससे चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता पर केंद्रीकृत रूप से नजर रखी जा सकेगी।
क्यों लिया गया यह फैसला?
एनएमसी का कहना है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में चिकित्सा उपकरण (Medical Device Safety) जैसे पेसमेकर, इम्प्लांट और ICU मशीनें इलाज का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। लेकिन हाल के वर्षों में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनमें तकनीकी खामियों या मानवीय त्रुटियों की वजह से मरीजों को गंभीर नुकसान पहुंचा है। इन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए अब चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता को लेकर सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया गया है।
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मेटेरियोविजिलेंस प्रोग्राम क्या है?
केंद्र सरकार ने 2015 में चिकित्सा उपकरणों (Medical Device Safety) से जुड़ी समस्याओं और घटनाओं की निगरानी के लिए मेटेरियोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (MvPI) की शुरुआत की थी, जिसे भारतीय औषध भेषज आयोग संचालित करता है। वहीं, 2017 में लागू मेडिकल डिवाइस रूल्स के तहत उपकरणों के निर्माण, आयात, बिक्री और वितरण के बाद की सुरक्षा को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इन नियमों के अनुसार, निर्माता कंपनियों को गंभीर घटनाओं की रिपोर्ट करना अनिवार्य है।
मरीजों को मिलेगा सीधा लाभ
एनएमसी की इस पहल (Medical Device Safety) से मरीजों को सीधा लाभ मिलेगा। अब अगर किसी मरीज को किसी खराब डिवाइस से नुकसान होता है, तो उसकी शिकायत मेडिकल कॉलेज स्तर पर दर्ज होकर सीधे नियामक आयोग तक पहुंचेगी। इससे जवाबदेही तय की जा सकेगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह पहल चिकित्सा क्षेत्र में पारदर्शिता और गुणवत्ता को बढ़ावा देगी।
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