SC on Doctors Safety: डॉक्टरों पर बढ़ते हमलों के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नई गाइडलाइंस बनाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोर्ट हर एक घटना की निगरानी नहीं कर सकता।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ (SC on Doctors Safety) ने यह स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर पहले ही दिशा-निर्देश दिए जा चुके हैं, और संसद को इस संबंध में कानून बनाने की ज़रूरत है। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट यहाँ बैठकर हर घटना की निगरानी नहीं कर सकता। यह नीति संबंधी मामला है और इसके लिए संसद को कानून बनाना होगा।
आत्महत्या करने वाली डॉक्टर अर्चना शर्मा का मामला भी शामिल
सुनवाई के दौरान एक याचिका में डॉक्टर अर्चना शर्मा की आत्महत्या की सीबीआई जांच की मांग की गई थी। राजस्थान के दौसा में एक मरीज की प्रसव के दौरान मृत्यु के बाद डॉक्टर अर्चना को जनता के गुस्से और पुलिस की एफआईआर का सामना करना पड़ा था, जिससे आहत होकर उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।
दिल्ली डॉक्टर्स फोरम, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (द्वारका) और अधिवक्ता सुनीत कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिकाओं में डॉक्टरों के लिए सुरक्षा दिशानिर्देशों को सुदृढ़ करने और आत्महत्या जैसे मामलों की निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी।
यह भी पढ़ें: NEET UG 2025: नीट परीक्षा 4 मई को, 23 लाख उम्मीदवार होंगे शामिल
SC on Doctors Safety: “दिशा-निर्देश पहले से मौजूद”
पीठ ने कहा (SC on Doctors Safety) कि 21 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट पहले ही केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर चुका है। लेकिन अब इस मामले में नए निर्देश जारी करना संभव नहीं है। अदालत ने कहा कि पहले से दिए गए दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होने पर अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पुलिस को डॉक्टरों के मामलों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, तो पीठ ने कहा, “ये सभी नीतिगत मामले हैं।”
“हर पुलिस थाने पर आरोप लगाना ठीक नहीं”
सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरणारायणन ने तर्क दिया कि डॉक्टरों के खिलाफ देशभर में मनमाने तरीके से केस दर्ज हो रहे हैं। इस पर कोर्ट ने पूछा, “हर पुलिस थाने पर ऐसा आरोप कैसे लगाया जा सकता है?”
पीठ (SC on Doctors Safety) ने यह भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता चाहें, तो संबंधित हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं। चूंकि इस मामले में राजस्थान से संबंधित मुद्दे उठाए गए हैं, इसलिए दिल्ली हाई कोर्ट में सभी राज्यों को भेजना उचित नहीं होगा।
Discussion about this post