Kerala High Court: केरल हाईकोर्ट ने केरल क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2018 और उसके नियमों की वैधता को बरकरार रखते हुए डॉक्टरों और निजी अस्पताल संगठनों की याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि हर निजी अस्पताल को अपने शुल्क और पैकेज दरें प्रमुखता से अंग्रेजी और मलयालम भाषा में प्रदर्शित करनी होंगी।
अधिनियम की धारा 39 के तहत, हर अस्पताल और क्लीनिक को इलाज के लिए ली जाने वाली फीस और पैकेज दरें स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करनी होंगी। अदालत (Kerala High Court) ने कहा कि यह पहले ही एक डिवीजन बेंच द्वारा निर्देशित किया जा चुका है, और अब दोबारा इसे चुनौती नहीं दी जा सकती।
डॉक्टर संगठनों की आपत्ति खारिज
इस कानून को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA), केरल प्राइवेट हॉस्पिटल्स एसोसिएशन, मेडिकल लेबोरेटरी ओनर्स एसोसिएशन, केरल प्राइवेट क्लीनिक्स एसोसिएशन, और इंडियन डेंटल एसोसिएशन ने चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि “फीस दर” और “पैकेज दर” की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है, जिससे अधिकारियों को मनमाने तरीके से कार्रवाई करने की शक्ति मिल जाएगी।
लेकिन न्यायमूर्ति हरिशंकर वी. मेनन की एकल पीठ ने इन दलीलों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता पहले से ही उस मामले का हिस्सा थे, जिसमें यह दिशा-निर्देश दिया जा चुका है।
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पंजीकरण रद्द करने की शक्ति पर भी आपत्ति खारिज
धारा 25 के तहत, यदि कोई क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट नियमों का पालन नहीं करता या मरीजों की सुरक्षा को खतरा पहुंचाता है, तो जिला पंजीकरण प्राधिकारी उसे कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है और सुनवाई के बाद पंजीकरण रद्द कर सकता है।
अदालत (Kerala High Court) ने माना कि यह शक्ति संविधानिक सीमाओं के भीतर है और इसके खिलाफ अपील और पुनरीक्षण का प्रावधान भी है। इस प्रकार, कोई भी मनमानी नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक पंजीकरण रद्द करने के आदेश को ठोस तथ्यों और आंकड़ों से सिद्ध नहीं किया जाता, तब तक वह न्यायिक समीक्षा के अधीन रहेगा।
‘डेंटिस्ट्री’ पर कानून लागू होने का भी विरोध खारिज
कुछ याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ‘डेंटिस्ट्री’ को इस कानून के दायरे में लाना राज्य की विधायी क्षमता के बाहर है। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि डेंटिस्ट्री, चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है और “मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्रणाली” की परिभाषा में आती है।
रोगियों के कल्याण संगठन के प्रतिनिधि की भागीदारी भी उचित
धारा 3 और 8 के तहत, राज्य परिषद और कार्यकारी समिति में रोगियों के कल्याण संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल करने पर भी आपत्ति की गई थी। लेकिन कोर्ट (Kerala High Court) ने कहा कि जब सेवा प्रदाताओं (जैसे IMA और Dental Association) को प्रतिनिधित्व दिया गया है, तो सेवा लेने वालों को भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
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अन्य आपत्तियां भी कोर्ट ने खारिज कीं
याचिकाकर्ताओं ने कानून को अस्पष्ट और अधिकारियों को अत्यधिक शक्ति देने वाला बताया, लेकिन कोर्ट (Kerala High Court) ने सुप्रीम कोर्ट के “State of A.P. v. McDowell & Co.” फैसले का हवाला देते हुए कहा कि किसी कानून को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि वह असंगत या मनमाना है, जब तक कि वह संविधान या मूल अधिकारों का उल्लंघन न करे।
Kerala High Court की अंतिम टिप्पणी
अदालत ने State of Punjab v. Shiv Ram केस का भी हवाला दिया और कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में बाहरी विनियमन आवश्यक है। साथ ही अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता अगर कानून के पालन में किसी व्यावहारिक कठिनाई का सामना कर रहे हैं, तो वे सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठा सकते हैं और सरकार को आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए।
आदेश पढ़ने के लिए नीचे दी गई PDF को देखें:-
kerala-hc-clinical-establishment-act-292191
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