RTI Reveals: भारत में मेडिकल शिक्षा की कठिनाई और मानसिक दबाव के कारण चिकित्सा छात्रों के लिए शिक्षा प्राप्त करना एक चुनौतीपूर्ण अनुभव बनता जा रहा है।
हाल ही में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) द्वारा एक RTI आवेदन के तहत प्राप्त आंकड़ों ने यह गंभीर स्थिति सामने रखी है, जिसमें खुलासा हुआ है कि पिछले पांच वर्षों में 1166 मेडिकल छात्रों ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी और 119 छात्रों ने आत्महत्या की।
1166 छात्रों का ड्रॉपआउट: RTI
इस डेटा के अनुसार, 1166 छात्रों ने अपनी मेडिकल शिक्षा बीच में ही छोड़ दी। यह आंकड़ा 512 मेडिकल कॉलेजों से प्राप्त हुआ, और इसमें 166 छात्र UG (MBBS) कोर्स के थे, जबकि बाकी सभी PG (Postgraduate) कोर्स के छात्र थे। पीजी छात्रों में सबसे अधिक ड्रॉपआउट्स:
- MS जनरल सर्जरी में 114 छात्र
- MS ऑर्थोपेडिक्स में 50 छात्र
- Obstetrics & Gynaecology में 103 छात्र
- MS ENT में 100 छात्र
- MD जनरल मेडिसिन में 56 छात्र
- MD पीडियाट्रिक्स में 54 छात्र
- और अन्य ब्रांचेज़ में 529 छात्र शामिल हैं।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि मेडिकल शिक्षा के प्रति छात्रों की निराशा और असहनीय मानसिक दबाव की स्थिति गंभीर रूप से बढ़ रही है।
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119 आत्महत्याएं: एक भयावह हकीकत
RTI के जवाब में सामने आए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में 119 मेडिकल छात्रों ने आत्महत्या की। इनमें से 64 छात्र MBBS कोर्स के थे, जबकि 55 छात्र PG कोर्स के थे। आत्महत्या के बढ़ते मामलों से यह साफ जाहिर होता है कि छात्रों को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जो अंततः उन्हें इस तरह के दुखद कदम उठाने पर मजबूर कर रहा है।
INIs (Institutes of National Importance) में भी ड्रॉपआउट्स का मुद्दा
यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट (UDF) द्वारा मांगी गई जानकारी से यह भी पता चला कि Institutes of National Importance (INIs) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी ड्रॉपआउट्स की स्थिति गंभीर है।
- AIIMS नागपुर में 56 पीजी छात्रों ने कोर्स छोड़ा,
- AIIMS भुवनेश्वर में 122 छात्रों ने ड्रॉपआउट किया,
- JIPMER में 276 छात्रों ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी।
हालांकि, AIIMS भुवनेश्वर से यह जानकारी मिली कि वहां किसी भी पीजी छात्र ने आत्महत्या नहीं की।
PG छात्रों के लिए बढ़ता मानसिक दबाव और शिकायतों की संख्या
पिछले पांच वर्षों में NMC को कुल 1680 शिकायतें प्राप्त हुईं, जो विभिन्न मुद्दों से संबंधित थीं, जैसे:
- रैगिंग, अत्यधिक कार्यभार, लंबी कार्य घंटे
- वरिष्ठ छात्रों और फैकल्टी द्वारा मानसिक उत्पीड़न
- शोषण और उत्पीड़न के मामले
- HOD/थीसिस गाइड या फैकल्टी द्वारा पावर का दुरुपयोग
इन शिकायतों से यह सिद्ध होता है कि मेडिकल छात्रों को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक दबाव का भी सामना करना पड़ता है, जो उनके अध्ययन और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
RTI के खुलासे पर UDF का कड़ा बयान
UDF के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. लक्ष्य मित्तल ने इन आंकड़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह आंकड़े केवल संख्याएं नहीं हैं, बल्कि वे उन जिंदगियों और सपनों की कहानी हैं जो प्रणाली की उपेक्षा और थकावट का शिकार हो गई हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद, 1992 के सेंट्रल रेजिडेंसी स्कीम के निर्देश अब तक कागज़ों तक ही सीमित हैं, जिनमें ड्यूटी-ऑवर रूल्स, साप्ताहिक छुट्टियों और मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा जैसी आवश्यकताओं को शामिल किया गया था। हमने इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका (PIL) भी दायर की है और हम न्यायालय से आशा करते हैं कि जल्द ही ऐसे सार्थक सुधार लागू किए जाएंगे जो चिकित्सा शिक्षा के भविष्य को सुरक्षित रखें।
समाज और सरकार से अपील: छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
RTI के यह आंकड़े सिर्फ चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता को ही नहीं, बल्कि समाज और सरकार से यह अपील भी करते हैं कि छात्रों की सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और वेलफेयर को प्राथमिकता दी जाए। मेडिकल छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य, उनके कार्यभार और शिक्षा के माहौल में सुधार करना समय की आवश्यकता बन गया है।
आखिरकार, इन छात्रों की जिंदगी और उनके सपनों को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए ताकि वे न केवल चिकित्सा क्षेत्र में अपना योगदान दे सकें, बल्कि समाज में भी एक सकारात्मक बदलाव ला सकें।
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