SC Notice to IMA: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस केंद्र सरकार की उस याचिका पर जारी हुआ है जिसमें केरल हाईकोर्ट के हालिया फैसले को चुनौती दी गई है।
हाईकोर्ट ने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 (CGST Act, 2017) की उन धाराओं को असंवैधानिक करार दिया था, जिनके तहत क्लबों और एसोसिएशनों द्वारा अपने सदस्यों को दी जाने वाली सेवाओं पर GST लगाया जाता था।
सुप्रीम कोर्ट ने वसूली पर रोक लगाई
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और एएस चंदुरकर की पीठ ने स्पष्ट किया कि IMA से किसी भी प्रकार की वसूली की कार्रवाई नहीं होगी। यह आदेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार की प्रार्थना पर दिया गया, जिन्होंने एसोसिएशनों की ओर से तर्क दिया कि पिछले समय की अवधि के लिए वसूली नहीं की जानी चाहिए।
यह भी पढ़ें: पश्चिम बंगाल के 71 मेडिकल कॉलेजों में NMC गाइडलाइंस का उल्लंघन
IMA और GST विभाग का विवाद
- IMA ने 2023 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और GST खुफिया अधिकारियों को उसकी संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क करने से रोकने की मांग की थी।
- इससे पहले, DGGI ने IMA सचिव को ईमेल भेजकर केरल शाखा के नाम पंजीकृत सभी अचल संपत्तियों की सूची मांगी थी।
- एसोसिएशनों का कहना था कि वह “चैरिटेबल एसोसिएशन” के रूप में पंजीकृत है, इसलिए उस पर GST लागू नहीं होता।
- वहीं, GST विभाग का कहना था कि एसोसिएशनों की 90% गतिविधियां गैर-चैरिटेबल श्रेणी में आती हैं।
हाईकोर्ट का फैसला और संवैधानिक प्रश्न
- 2023 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने IMA की याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि IMA को अपने सदस्यों को दी जाने वाली सेवाओं और वस्तुओं पर GST चुकाना होगा।
- इसके बाद IMA ने डिवीजन बेंच का रुख किया और “सिद्धांत पारस्परिकता” (Principle of Mutuality) का हवाला देते हुए दलील दी कि क्लब या एसोसिएशन द्वारा अपने सदस्यों को दी जाने वाली सेवाएं कर योग्य नहीं होतीं।
- लेकिन वित्त अधिनियम 2021 के जरिए CGST और KGST कानूनों में संशोधन कर यह प्रावधान लागू किया गया कि ऐसी सेवाओं को टैक्स योग्य माना जाएगा। इसे 1 जुलाई 2017 से प्रभावी कर दिया गया था।
- IMA ने इन संशोधनों को संविधान के खिलाफ बताते हुए चुनौती दी।
डिवीजन बेंच का ऐतिहासिक फैसला
केरल हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (न्यायमूर्ति डॉ. जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति एस. ईश्वरन) ने प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने कहा कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 246A, 366(12A) और अनुच्छेद 265 के खिलाफ हैं।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि किसी टैक्स प्रावधान को पिछली तारीख से लागू करना अवैध और अन्यायपूर्ण है, क्योंकि संबंधित पक्षों ने उस अवधि के लिए ऐसे कर की अपेक्षा नहीं की थी।
अब मामला सुप्रीम कोर्ट में
केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। शीर्ष अदालत ने एसोसिएशनों और अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई तक वसूली की कार्रवाई रोक दी है।
Discussion about this post