राजस्थान सरकार के हालिया निर्णय के तहत राज्य के प्रतिष्ठित स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट (SCI) को अब SMS मेडिकल कॉलेज से हटाकर राजस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) में स्थानांतरित कर दिया गया है। इस कदम ने डॉक्टरों, कैंसर मरीजों और पोस्टग्रेजुएट (PG) मेडिकल सीटों के भविष्य को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
SCI में कार्यरत डॉक्टर, जो SMS मेडिकल कॉलेज से नियुक्त थे, ने स्पष्ट कर दिया है कि वे RIMS में काम नहीं करेंगे। समाचार पत्र दैनिक भास्कर के अनुसार कई डॉक्टरों ने कहा है कि यदि उन्हें RIMS में स्थानांतरित किया गया, तो वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) के लिए आवेदन करेंगे। इस स्थिति में कैंसर मरीजों के उपचार में व्यवधान आ सकता है।
मरीजों का भविष्य संकट में
डॉक्टरों के स्थानांतरण, VRS या अस्थायी व्यवस्थाओं के कारण SCI में इलाज ले रहे कैंसर मरीजों की सेवा प्रभावित हो सकती है।
PG मेडिकल सीटों की अनिश्चितता
SCI में PG मेडिकल सीटों का भविष्य भी असुरक्षित नजर आता है। RIMS को अब राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (NMC) से पुनः मान्यता प्राप्त करनी होगी। वर्तमान में SCI में कुल 26 PG सीटें हैं:
- रेडियोऑन्कोलॉजी में 16 सीटें
- मेडिकल ऑन्कोलॉजी में 2 सीटें
- सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में 8 सीटें
यदि पुनः मान्यता नहीं मिली, तो ये PG सीटें रद्द हो सकती हैं।
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SCI का इतिहास और महत्व
SCI की स्थापना 2015 में SMS मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत NPCDCS योजना के तहत की गई थी। उस समय राजस्थान में केवल SMS मेडिकल कॉलेज ही कैंसर उपचार के 5 साल के अनुभव की शर्त पूरी कर रहा था। वर्ष 2016-2020 के बीच केंद्रीय सरकार ने SCI के लिए ₹120 करोड़ की सहायता प्रदान की थी।
RIMS में काम क्यों नहीं करना चाहते डॉक्टर?
SMS मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकते हैं, जबकि RIMS एक गैर-प्राइवेट प्रैक्टिसिंग संस्थान है। RIMS में काम करने पर डॉक्टरों को मरीजों को बाहर से नहीं देख सकते। यही मुख्य कारण है कि डॉक्टर RIMS में काम करने के लिए तैयार नहीं हैं।
SMS मेडिकल कॉलेज अब बिना कैंसर विभाग के रह जाएगा। इसके कारण डॉक्टरों और संसाधनों का पुनः वितरण, PG छात्रों की पढ़ाई और मरीजों का इलाज चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
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