NCDRC: फोर्सेप डिलीवरी के दौरान डॉक्टर की कथित लापरवाही से नवजात को गंभीर चोटें लगने के मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने नेल्लोर की एक प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना ठोका है।
हालांकि, आयोग (NCDRC) ने मानसिक पीड़ा के लिए राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा दिए गए 30 लाख रुपये के मुआवजे को रद्द कर दिया, क्योंकि मानसिक विकलांगता और चोटों के बीच कोई सीधा संबंध साबित नहीं हो सका।
यह मामला 17 अप्रैल 2011 की फोर्सेप डिलीवरी से जुड़ा है, जिसमें एक महिला ने आरोप लगाया कि डिलीवरी के दौरान नवजात के सिर पर कुचलने वाली चोटें और कान की पिन्ना (बाहरी हिस्सा) अलग हो गया था। उन्होंने दावा किया कि इन चोटों के कारण बच्चे को मस्तिष्क क्षति हुई और वह मानसिक रूप से विकलांग हो गया।
राज्य आयोग ने 30 लाख का मुआवजा दिया था
राज्य उपभोक्ता आयोग, आंध्र प्रदेश ने मार्च 2019 में डॉक्टर पी. यशोधरा को दोषी मानते हुए शिकायतकर्ता को मानसिक पीड़ा के लिए 30 लाख और इलाज खर्च के लिए कुल 30,72,530 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ डॉक्टर ने NCDRC में अपील की थी।
डॉक्टर यशोधरा ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि डिलीवरी के समय बच्चे की हालत सामान्य थी, उसका APGAR स्कोर अच्छा था और एक विशेषज्ञ बाल रोग विशेषज्ञ ने उसे केवल ऐहतियातन एंटीबायोटिक दवाएं दी थीं। उन्होंने यह भी कहा कि मरीज को बाद में एनीमिया के कारण 21 अप्रैल से 27 अप्रैल तक फिर अस्पताल में भर्ती किया गया था, जो लापरवाही के आरोप को खारिज करता है।
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सीज़र डिलीवरी की थी मांग
शिकायतकर्ता महिला की ओर से कहा गया कि डॉक्टर को अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से पता था कि बच्चा 3.6 किलो का है, ऐसे में सीज़र डिलीवरी करना उचित होता। लेकिन डॉक्टर ने उनकी बात नहीं मानी और फोर्सेप डिलीवरी की। साथ ही उन्होंने महिला से बिना उचित जानकारी दिए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लिए।
महिला ने आगे बताया कि डिलीवरी के बाद बच्चे की हालत बिगड़ने पर उसे चेन्नई के कांची कामकोटी चाइल्ड ट्रस्ट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज में लगभग 4 लाख रुपये खर्च हुए। अस्पताल द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया कि फोर्सेप के अनुचित इस्तेमाल से ही चोटें आईं।
चोटें साबित, लेकिन मानसिक विकलांगता से सीधा संबंध नहीं: NCDRC
NCDRC की पीठ, जिसमें सदस्य बीजॉय कुमार और न्यायमूर्ति सरोज यादव शामिल थे, ने कहा कि रिकॉर्ड में यह स्पष्ट है कि बच्चे के सिर पर गंभीर चोटें आईं थीं और कान की पिन्ना को भी नुकसान हुआ था। चेन्नई के अस्पताल की डिस्चार्ज समरी में इन चोटों की पुष्टि हुई है, जिसे डॉक्टर ने भी सीधे खारिज नहीं किया।
आयोग ने यह भी कहा कि डॉक्टर द्वारा लिया गया सहमति पत्र अस्पष्ट था और इसमें फोर्सेप डिलीवरी जैसी प्रक्रिया का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं था। यह एक सामान्य प्री-प्रिंटेड फॉर्म था, जिसे डॉक्टर ने रूटीन में इस्तेमाल किया। इसलिए इसे ‘सूचित सहमति’ नहीं माना जा सकता।
हालांकि, आयोग ने यह भी कहा कि बच्चे की मानसिक विकलांगता का चोटों से सीधा संबंध साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश नहीं किए गए, इसलिए उस आधार पर अधिक मुआवजा नहीं दिया जा सकता।
10 लाख मुआवजा, 72,530 इलाज खर्च और 50,000 वाद व्यय
NCDRC ने डॉक्टर को निर्देश दिया कि वह मरीज को 10 लाख रुपये मुआवजा, 72,530 रुपये इलाज खर्च और 50,000 रुपये मुकदमा खर्च के रूप में अदा करें। आयोग ने स्पष्ट किया कि राज्य आयोग द्वारा दी गई 30 लाख की राशि न्यायसंगत नहीं थी, क्योंकि उसका कोई ठोस आधार नहीं था।
यहां PDF में पढ़ें कोर्ट का आदेश
1750768930_p-yashodhara-medical-negligence-605938-1pdf
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