Zoonotic Study: भारत ने शुक्रवार को एक महत्वाकांक्षी और अभूतपूर्व वैज्ञानिक अध्ययन की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य पक्षियों से मनुष्यों में फैलने वाली जूनोटिक (पशुजन्य) बीमारियों का समय रहते पता लगाना और रोकथाम करना है। यह अध्ययन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के नेतृत्व में “वन हेल्थ” दृष्टिकोण को अपनाते हुए किया जा रहा है।
“वन हेल्थ दृष्टिकोण का उपयोग करके पक्षी-मानव संपर्क से जूनोटिक संक्रमण का पता लगाने के लिए एक निगरानी मॉडल का निर्माण: स्टडी एट सिलेक्टेड बर्ड सेंचुरीज़ एंड वेटलैंड्स” नामक यह अध्ययन सिक्किम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के चुनिंदा पक्षी अभयारण्यों और आर्द्रभूमियों में किया जाएगा। इसका उद्देश्य प्रवासी पक्षियों और स्थानीय मानव आबादी के बीच संक्रमण की संभावनाओं की निगरानी करना है।
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ICMR प्रमुख की टिप्पणी
इस अवसर पर ICMR के महानिदेशक और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव डॉ. राजीव बहल ने कहा, “जैसे सुरक्षा के लिए रडार जरूरी होता है, वैसे ही उभरते स्वास्थ्य खतरों के लिए मजबूत निगरानी प्रणाली आवश्यक है। वैज्ञानिक अनुसंधान विभागों को मिलकर इन निगरानी ‘रडारों’ को विकसित करना होगा।”
NCDC का सहयोग
राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) के निदेशक डॉ. रंजन दास ने कहा कि यह पहल जूनोटिक संक्रमणों की समझ को गहरा करेगी और इससे समय पर कार्रवाई संभव हो सकेगी। उन्होंने इसे देश की रणनीति के अनुरूप बताया।
अन्य विभागों का समर्थन
प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय की डॉ. संगीता अग्रवाल ने कहा कि यह अध्ययन मंत्रालयों के बीच विज्ञान आधारित सहयोग का उदाहरण है, जिससे नीतिगत निर्णयों को मजबूती मिलेगी। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहायक वन महानिरीक्षक श्री सुनील शर्मा ने इस प्रयास को जैव विविधता संरक्षण और समुदाय सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर बताया।
प्रवासी पक्षियों से संक्रमण का खतरा
भारत मध्य एशियाई प्रवासी पक्षी मार्ग का अहम हिस्सा है, जहां हर साल बड़ी संख्या में पक्षी आते हैं। इन क्षेत्रों में कार्यरत बचाव दल और पशु चिकित्सक सीधे संपर्क में रहते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
तकनीकी दृष्टिकोण
अध्ययन में पक्षियों और पर्यावरण से नमूने लिए जाएंगे और उनमें उभरते रोगजनकों की जांच की जाएगी। इसके लिए नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS) जैसे उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल होगा, जिससे नए संक्रमणों की शुरुआती पहचान संभव होगी।
अध्ययन में क्या होगा खास?
- बर्ड सेंक्चुरी कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों की स्वास्थ्य जांच
- पक्षियों और पर्यावरण से नमूने लेकर नए रोगजनकों की पहचान
- उन्नत जांच उपकरण जैसे नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS) का उपयोग
- वास्तविक समय में अलर्ट देने वाला निगरानी मॉडल तैयार करना
देश में पहला ‘अर्ली वार्निंग सिस्टम’ विकसित होगा
इस अध्ययन से भारत का पहला जूनोटिक संक्रमण के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) तैयार होगा। इससे वन्यजीव स्वास्थ्य, पर्यावरण विज्ञान और मानव स्वास्थ्य का एकीकृत दृष्टिकोण अपनाकर देश को भावी महामारी से लड़ने के लिए बेहतर रूप से तैयार किया जाएगा।
निष्कर्ष
यह पहल वन्यजीव, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के बीच समन्वय को मजबूत करते हुए, भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
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