UDF Survey: भारत के युवा डॉक्टरों और मेडिकल स्टूडेंट्स के बीच एक खतरनाक ट्रेंड सामने आया है। एक नए राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, 86% से अधिक मेडिकल इंटर्न और पीजी छात्र मानते हैं कि अत्यधिक ड्यूटी घंटे न केवल उनकी मानसिक सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि मरीजों की सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहे हैं।
यह सर्वे यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट (UDF) और मेडिकल डायलॉग्स द्वारा 12 मार्च से 24 मार्च 2025 के बीच ऑनलाइन किया गया, जिसमें देश भर के 1,031 मेडिकल छात्रों और इंटर्न्स ने हिस्सा लिया।
UDF Survey की मुख्य बातें:
वर्कलोड और ड्यूटी घंटे
- 62.17% छात्र हर सप्ताह 72 घंटे से अधिक काम कर रहे हैं
- सिर्फ 18.91% को साप्ताहिक छुट्टी मिलती है
- 58% से अधिक को पेड या एकेडमिक लीव नहीं मिल रही
मानसिक स्वास्थ्य पर असर:
- 84.77% ने चिंता, डिप्रेशन या बर्नआउट की शिकायत की
- 81.09% छात्र लगातार थकावट महसूस करते हैं
- 86.52% मानते हैं कि उनकी थकान मरीजों की सुरक्षा को प्रभावित कर रही है
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वित्तीय दबाव:
- 44.91% को कोर्स छोड़ने पर ₹25 लाख तक का जुर्माना भुगतना पड़ता है
- 13.09% छात्रों पर ₹50 लाख से अधिक का जुर्माना लगाया जाता है
सबसे ज्यादा प्रभावित कौन?
- सुपर-स्पेशियलिटी छात्र सबसे अधिक काम के बोझ में (76.74% >72 घंटे/सप्ताह)
- साउथ ज़ोन में मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर (90.57%)
- निजी संस्थानों में जुर्माना सबसे ज्यादा (26.87% मामलों में ₹50 लाख से ऊपर)
UDF के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. लक्ष्य मित्तल ने कहा कि डॉक्टर लगातार शिफ्ट, जहरीले कार्यसंस्कृति और कोर्स छोड़ने पर भारी जुर्माने के दबाव में टूट रहे हैं। यह सर्वे ज़मीनी सच्चाई को उजागर करता है और यह समय है कि NMC और स्वास्थ्य संस्थानों को तत्काल सुधार लाने होंगे।
वहीं, मेडिकल डायलॉग्स के चेयरमैन डॉ. प्रेम अग्रवाल ने चेतावनी दी है कि हम मानसिक बर्नआउट की एक चुपचाप बढ़ती महामारी की ओर बढ़ रहे हैं। यदि ड्यूटी घंटे नहीं घटाए गए और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो हम अपने सबसे प्रतिभाशाली डॉक्टरों को खो देंगे।”
UDF की सिफारिशें:
- केंद्रीय रेजीडेंसी योजना 1992 को तुरंत लागू किया जाए
- ड्यूटी घंटों का मानकीकरण किया जाए
- साप्ताहिक अवकाश और लीव अधिकारों की गारंटी हो
- सभी मेडिकल संस्थानों में शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की जाए
निष्कर्ष:
यह सर्वे डॉक्टरों के मौन संघर्ष की गूंज है। भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को स्थिर और सुरक्षित रखने के लिए अब समय आ गया है कि डॉक्टरों के लिए सम्मानजनक कार्य-परिस्थितियां सुनिश्चित की जाएं।
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