Opioid Use Disorder: ओपिओइड यूज डिसऑर्डर (OUD) एक बेहद गंभीर बीमारी है, जिसमें इंसान ओपिओइड दवाओं का आदि हो जाता है।
इन दवाओं का इस्तेमाल मरीज के फिजिकल और इमोशनल वेलबीइंग पर बुरा असर पड़ता। हालांकि अब ओपिओइड यूज डिसऑर्डर के मरीजों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जागी है।
रिसर्च ने दी उम्मीद की किरण
हाल ही में हुई एक नई रिसर्च में पाया गया है कि जीएलपी-1 रिसेप्टर (GLP-1RA) दवाएं ओपिओइड यूज डिसऑर्डर के इलाज में काफी हद तक मदद कर सकती हैं। मुख्य रूप से डायबिटीज के बनाई गई जीएलपी-1 रिसेप्टर का इस्तेमाल अब नशे की लत कम करने में भी किया जा सकता है।
कैसे हुई रिसर्च?
अमेरिका के कैरॉन ट्रीटमेंट सेंटर्स (Caron Treatment Centers) में 3 हफ्ते की रिसर्च में 20 मरीजों को शामिल किया गया, जिसमें नोवो नॉर्डिस्क के सैक्सेंडा (Liraglutide), एक जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट (GLP-1RA) का मोनोथेरेपी के रूप में अध्ययन किया।
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40 फीसदी एडिक्शन कम हुआ
ग्लोबलडाटा के मुताबिक, इस स्टडी ने मौजूदा इलाज को टक्कर देने की अपनी क्षमता पेश की और सैक्सेंडा लेने वालों में ओपिओइड की तलब में 40 फीसदी की कमी दिखाई। मूल रूप से डायबिटीज के इलाज के लिए विकसित, जीएलपी-1आरए (GLP-1RA) इंसुलिन सिक्रीशन से ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद मिलती है। यह मस्तिष्क के उन हिस्सों में भी सक्रिय होता है, जो इच्छा (क्रेविंग) और इनाम (रिवॉर्ड सिस्टम) से जुड़े होते हैं। यही कारण है कि यह ओयूडी के इलाज में प्रभावी साबित हो सकता है।
ओपिओइड दवाओं की सीमाएं
वर्तमान में, ओपिओइड के इलाज के लिए मेथाडोन और ब्यूप्रेनोर्फिन जैसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ये दवाएं खुद नशे को बढ़ा सकती हैं और इनके दुष्प्रभाव भी हैं। इसलिए, जीएलपी-1 रिसेप्टर दवाएं एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प हो सकती हैं।
ज्यादा रिसर्च की जरूरत
ग्लोबलडाटा के ड्रग डेटाबेस के मुताबिक, मौजूदा वक्त में लेट स्टेज डेवलपमेंट (फेज IIबी-III) में 7 दवाओं में से 6 नॉन-ओपिओइड हैं। हालांकि, इन दवाओं में से कई का डाटा उपलब्ध नहीं है। इसलिए, पाइपलाइन में नॉन-ओपिओइड की मौजूदगी के बावजूद, बहुत असरदार नॉन ओपियोइड दवाओं की अभी भी कमी है, और यह एक बड़ा मौका है।
ओपिओइड के अलावा, जीएलपी-1 रिसेप्टर आधारित दवाओं पर अन्य बीमारियों के इलाज के लिए भी रिसर्च जारी है, जैसे- अल्जाइमर और स्मरण शक्ति से जुड़ी समस्याएं, पार्किंसंस रोग, शराब की लत, तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याएं और इंट्राक्रेनियल हाइपरटेंशन। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि जीएलपी-1 रिसेप्टर आधारित नई दवाओं से न्यूरोलॉजी के क्षेत्र में बड़ी प्रगति हो सकती है।
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