Neurodegenerative: मस्तिष्क संबंधी गंभीर बीमारियों जैसे अल्जाइमर और पार्किंसन के इलाज में अब एक नई उम्मीद जगी है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत काम करने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IASST) के वैज्ञानिकों ने पेप्टिडोमिमेटिक्स नामक एक नई श्रेणी की दवाएं विकसित की हैं, जो इन रोगों (Neurodegenerative) के उपचार में क्रांतिकारी साबित हो सकती हैं। यह शोध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल ‘Drug Discovery Today’ में प्रकाशित हुआ है।
पेप्टिडोमिमेटिक्स: प्राकृतिक प्रोटीन जैसे लेकिन अधिक असरदार
इन दवाओं की खासियत यह है कि ये शरीर में मौजूद प्राकृतिक न्यूरोट्रोफिन्स की तरह काम करती हैं, लेकिन उनसे कहीं अधिक स्थिर और प्रभावशाली होती हैं। न्यूरोट्रोफिन्स मस्तिष्क में न्यूरॉन्स की वृद्धि और सुरक्षा में सहायक होते हैं, लेकिन वे शरीर में जल्दी नष्ट हो जाते हैं और अपनी पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर पाते। पेप्टिडोमिमेटिक्स को इस समस्या को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
प्रोफेसर आशीष के. मुखर्जी के नेतृत्व में की गई इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने बताया कि ये दवाएं मस्तिष्क तक आसानी से पहुंच सकती हैं और वहां लंबे समय तक सक्रिय रहती हैं। इससे इनके असर की अवधि बढ़ जाती है और मरीजों को लंबे समय तक लाभ मिल सकता है।
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कम साइड इफेक्ट्स, अधिक टारगेटेड इलाज
शोध में यह भी सामने आया है कि इन दवाओं को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि वे केवल उसी हिस्से पर असर करें जहां उनकी जरूरत हो। इससे साइड इफेक्ट्स की संभावना भी कम हो जाती है, जो कि किसी भी दवा के विकास में एक बड़ी चुनौती होती है।
भविष्य में कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में भी संभावनाएं
शोधकर्ताओं ने यह भी संकेत दिए हैं कि इन दवाओं का उपयोग भविष्य में कैंसर जैसी अन्य जटिल बीमारियों के इलाज में भी किया जा सकता है। इससे आने वाले वर्षों में चिकित्सा विज्ञान में एक नई दिशा विकसित हो सकती है।
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा कि हमारा लक्ष्य ऐसी दवाएं विकसित करना है जो केवल असरदार ही नहीं, बल्कि सुरक्षित और लंबे समय तक प्रभावी भी हों। पेप्टिडोमिमेटिक्स इस दिशा में एक बड़ा कदम है।
Neurodegenerative: वैश्विक चुनौती के खिलाफ भारतीय प्रयास
दुनिया भर में अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। उम्रदराज़ लोगों में ये बीमारियां (Neurodegenerative) आम होती जा रही हैं और अब तक इनका कोई स्थायी इलाज नहीं है। ऐसे में IASST के वैज्ञानिकों की यह खोज भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए उम्मीद की किरण बन सकती है।
यह शोध न केवल भारतीय विज्ञान की ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि हमारे वैज्ञानिक वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान निकालने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। आने वाले समय में अगर ये दवाएं क्लीनिकल ट्रायल्स में सफल होती हैं, तो यह मानवता के लिए एक बड़ी जीत होगी।
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