Knya Vitals 2025 Report: देशभर में 10,000 से अधिक स्वास्थ्य पेशेवरों से एकत्रित आंकड़ों पर आधारित एक व्यापक सर्वेक्षण ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।
मेडिकल ब्रांड कन्या द्वारा शुरू किए गए इस पहले-अपने-तरह के सर्वेक्षण ‘Knya Vitals 2025: Behind the Scrubs’ में सामने आया कि 83 प्रतिशत डॉक्टर मानसिक और भावनात्मक थकान का सामना कर रहे हैं, जिनमें महिला डॉक्टरों की संख्या और भी अधिक (87%) है।
सर्वेक्षण (Knya Vitals 2025) के अनुसार, टियर 2 और 3 शहरों (जैसे नागपुर, औरंगाबाद आदि) में 85 प्रतिशत डॉक्टर भावनात्मक और शारीरिक थकान महसूस कर रहे हैं, जबकि टियर 1 शहरों (जैसे दिल्ली, मुंबई आदि) में यह आंकड़ा 74 प्रतिशत है। छोटे शहरों में डॉक्टरों ने मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों की कमी और अत्यधिक कार्यभार को इसका प्रमुख कारण बताया।
Knya Vitals 2025 Report: डॉक्टरों के काम के घंटे और निजी समय
- 50 प्रतिशत डॉक्टरों ने बताया कि वे हर सप्ताह 60 घंटे से अधिक काम करते हैं।
- 15 प्रतिशत डॉक्टरों का कहना है कि वे 80 घंटे से अधिक कार्य करते हैं।
- हर तीन में से एक डॉक्टर के पास दैनिक रूप से एक घंटे से भी कम निजी या पारिवारिक समय होता है।
Knya Vitals 2025 Report: कार्यस्थल सुरक्षा और महिला डॉक्टरों की चिंताएं
- 70% महिला डॉक्टरों ने कहा कि वे अपने कार्यस्थल पर सुरक्षित महसूस नहीं करतीं।
- 75% महिला डॉक्टरों ने मेडिकल प्रोफेशन को छोड़ने या न अपनाने का पछतावा जताया।
- टियर 2 और 3 शहरों में 72% महिला डॉक्टरों ने कार्यस्थल सुरक्षा को लेकर चिंता जताई, जो मेट्रो शहरों की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है।
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चिकित्सा नैतिकता और संस्थागत दबाव
- हर दो में से एक डॉक्टर ने बताया कि उन्हें संस्थान द्वारा मेडिकल एथिक्स के विरुद्ध कार्य करने का दबाव महसूस होता है।
युवा डॉक्टरों का पछतावा और स्वास्थ्य संकट
- 25-34 आयु वर्ग के डॉक्टरों ने सबसे अधिक काम के घंटे, थकान और करियर को लेकर पछतावा व्यक्त किया।
- हालांकि 35 वर्ष की उम्र के बाद यह पछतावा काफी घट जाता है।
डॉक्टरों की मेहनत और कम वेतन
- 43 प्रतिशत डॉक्टरों ने खुद को अल्प वेतनभोगी और संस्थागत सहयोग से वंचित बताया।
- 58% डॉक्टरों ने लंबे कार्य घंटों को, 46% ने मरीजों की भीड़ और 36% ने प्रशासनिक कार्यों को दैनिक चुनौती बताया।
Knya Vitals 2025: एआई से डर नहीं
दिलचस्प बात यह रही कि AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) को नौकरी के लिए खतरा मानने वाले डॉक्टरों की संख्या 1 प्रतिशत से भी कम थी।
बर्नआउट और मानसिक स्वास्थ्य संकट
- 55% डॉक्टरों ने मानसिक स्वास्थ्य गिरावट या बर्नआउट का डर जताया।
- 50% डॉक्टर भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के विफल होने से चिंतित हैं।
- 48% डॉक्टरों को ड्यूटी पर रहते हुए शारीरिक नुकसान का डर है।
पहले से भी आई थीं चिंताजनक रिपोर्ट्स
इस साल मार्च में यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट (UDF) और मेडिकल डायलॉग्स द्वारा कराए गए एक अन्य सर्वेक्षण में भी यही तस्वीर उभरी थी। उस ऑनलाइन सर्वे में भाग लेने वाले 1031 एमबीबीएस इंटर्न और पीजी छात्र, जिनमें से 86% ने माना कि अत्यधिक ड्यूटी घंटे उनकी मानसिक सेहत और मरीजों की सुरक्षा दोनों को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
- 62% डॉक्टरों ने बताया कि वे सप्ताह में 72 घंटे से अधिक काम करते हैं।
- आधे से अधिक डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता।
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