1st Test Tube Baby: जब भी मानवता के सामने चुनौतियाँ आई हैं, विज्ञान ने उन्हें अवसरों में बदलने का काम किया है।
ऐसा ही एक ऐतिहासिक चमत्कार आज से ठीक 39 साल पहले, 6 अगस्त 1986 को भारत में हुआ था, जब देश ने पहली बार इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक की मदद से एक टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया। इस बच्ची का नाम हर्षा रखा गया, जो आज भी चिकित्सा विज्ञान की एक शानदार सफलता की जीवित मिसाल है।
भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी (1st Test Tube Baby) का जन्म मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल (KEM) अस्पताल में हुआ। इस प्रक्रिया का नेतृत्व देश की मशहूर स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रजनन विशेषज्ञ डॉ. इंद्रा हिंदुजा ने किया। उनके साथ एक समर्पित चिकित्सकों और वैज्ञानिकों की टीम ने इस प्रयोग को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई।
यह सफलता भारत में सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology – ART) की आधिकारिक शुरुआत मानी जाती है और IVF तकनीक को आमजन तक पहुंचाने में मील का पत्थर साबित हुई।
1st Test Tube Baby: वैज्ञानिक रूप से रजिस्टर्ड उपलब्धि
हर्षा को “वैज्ञानिक रूप से रजिस्टर्ड पहली टेस्ट ट्यूब बेबी” (1st Test Tube Baby: ) कहा जाता है। इस शब्द का उपयोग इसलिए किया गया, क्योंकि 1978 में ब्रिटेन में लुईस ब्राउन के जन्म के कुछ ही समय बाद भारत के एक डॉक्टर ने भी ऐसा दावा किया था, जो औपचारिक वैज्ञानिक सत्यापन के अभाव में विवादित रहा।
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क्या है IVF तकनीक?
इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक में अंडाणु और शुक्राणु को शरीर के बाहर एकत्रित कर लैब में निषेचन किया जाता है। इसके बाद बने भ्रूण को मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। यह तकनीक उन दंपतियों के लिए वरदान साबित हुई है, जो सामान्य तरीके से संतान प्राप्ति में सक्षम नहीं होते।
भारत की मेडिकल साइंस को मिला वैश्विक मंच
1986 में हर्षा (1st Test Tube Baby) का जन्म केवल एक व्यक्तिगत चमत्कार नहीं था, बल्कि इसने भारत को वैश्विक मेडिकल मंच पर एक मजबूत उपस्थिति दिलाई। इसके बाद भारत में IVF तकनीक तेजी से लोकप्रिय और सुलभ होती गई। आज, देश भर में हजारों IVF केंद्र मौजूद हैं, जो हर साल लाखों निसंतान दंपतियों की आशाओं को साकार कर रहे हैं।
39 वर्षों की प्रेरणादायक यात्रा
आज जब हर्षा 39 वर्ष की हो चुकी हैं, तब यह दिन केवल एक व्यक्ति के जन्म का नहीं, बल्कि भारत की मेडिकल प्रगति और सामाजिक परिवर्तन की कहानी का प्रतीक बन गया है। उस एक दिन ने करोड़ों जीवन को दिशा दी, उम्मीद दी और विज्ञान में लोगों की आस्था को और गहरा किया।
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