Thalassemia: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत केंद्र सरकार देशभर में थैलेसीमिया जैसे गंभीर आनुवांशिक रक्त विकारों की रोकथाम और प्रबंधन के लिए निरंतर प्रयासरत है।
इसके अंतर्गत राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को स्वास्थ्य सेवाएं मज़बूत करने के लिए सहायता दी जा रही है, जिसमें थैलेसीमिया से संबंधित स्क्रीनिंग, उपचार, जागरूकता और प्रशिक्षण जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
देशव्यापी स्क्रीनिंग के आंकड़े:
26 मार्च 2025 तक राष्ट्रीय पोर्टल पर राज्यों द्वारा अपडेट किए गए आंकड़ों के अनुसार, देशभर में 15,87,903 लोगों की थैलेसीमिया जांच की गई, जिनमें से
🔹 5,037 व्यक्तियों में थैलेसीमिया रोग पाया गया और
🔹 50,462 व्यक्तियों को थैलेसीमिया वाहक (कैरियर) के रूप में चिन्हित किया गया।
यह आंकड़ा देश में थैलेसीमिया के बढ़ते जोखिम को दर्शाता है और इसके समय पर निदान व रोकथाम की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
थैलेसीमिया के प्रबंधन हेतु दिशा-निर्देश और सुविधाएं:
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2016 में “भारत में हीमोग्लोबिनोपैथीज की रोकथाम और नियंत्रण हेतु व्यापक दिशानिर्देश” जारी किए थे। इनमें थैलेसीमिया मेजर और नॉन-ट्रांसफ्यूजन डिपेंडेंट थैलेसीमिया (NTDT) के इलाज के लिए विशेष रणनीतियाँ दी गई हैं, जैसे कि नियमित रक्त चढ़ाना, आयरन की अधिकता को कम करने के लिए चिलेलेशन थेरेपी, जटिलताओं का प्रबंधन, और मानसिक व सामाजिक सहयोग।
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थैलेसीमिया बाल सेवा योजना (TBSY):
केंद्र सरकार द्वारा थैलेसीमिया बाल सेवा योजना के तहत बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) के लिए पात्र बच्चों को 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। यह योजना कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Ltd.) के CSR फंड के माध्यम से संचालित हो रही है और देशभर के 17 चयनित अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है।
थैलेसीमिया क्या है?
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो बच्चों को उनके माता-पिता से प्राप्त होता है। इस रोग में शरीर की हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है, जिससे एनीमिया जैसे लक्षण उभरने लगते हैं। आमतौर पर इसकी पहचान बच्चे के तीन माह की आयु के बाद होती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के शरीर में खून की अत्यधिक कमी होने लगती है, जिससे उन्हें बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है – माइनर और मेजर। यदि माता-पिता दोनों माइनर थैलेसीमिया के जीन्स के वाहक हैं, तो उनके बच्चे में मेजर थैलेसीमिया होने की 25 प्रतिशत संभावना रहती है। मेजर थैलेसीमिया एक गंभीर और जीवनभर चलने वाली स्थिति है, जिसमें नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन और विशेष इलाज की आवश्यकता पड़ती है।
हालांकि, यदि माता या पिता में से केवल एक को ही माइनर थैलेसीमिया है, तो बच्चे को कोई खतरा नहीं होता। लेकिन दोनों माता-पिता में माइनर थैलेसीमिया होने की स्थिति में यह रोग गंभीर रूप ले सकता है।
चिकित्सकों की सलाह है कि शादी से पहले युवक और युवती को थैलेसीमिया की जांच अवश्य करानी चाहिए, ताकि भविष्य में बच्चों को इस घातक रोग से बचाया जा सके। समय पर जांच और जागरूकता ही इस बीमारी की रोकथाम का सबसे कारगर उपाय है।
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