MBBS Interns Stipend: देशभर के कई निजी मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस इंटर्न्स को न तो उचित स्टाइपेंड दे रहे हैं और न ही उन्हें उनके कार्य के अनुरूप कोई सुविधा मिल रही है। इस संबंध में नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है।
यह जानकारी उस समय सामने आई जब सुप्रीम कोर्ट जुलाई 2025 में इंटर्न्स को स्टाइपेंड (MBBS Interns Stipend) न दिए जाने को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने वाला है। कोर्ट इस मुद्दे पर संज्ञान तब लिया था जब उसे बताया गया कि देश के 70% मेडिकल कॉलेजों में इंटर्न्स को स्टाइपेंड नहीं मिल रहा है।
MBBS Interns Stipend: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने एनएमसी को निर्देश दिया था कि वह सभी मेडिकल कॉलेजों की जानकारी एक तालिका के रूप में प्रस्तुत करे, जिसमें यह बताया जाए कि किन कॉलेजों में स्टाइपेंड (MBBS Interns Stipend) दिया जा रहा है और किनमें नहीं। हालांकि, एनएमसी द्वारा अप्रैल 2024 में प्रस्तुत सूची में सभी राज्यों के कॉलेज शामिल नहीं थे।
इस पर न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रसन्ना भालचंद्र वराले की पीठ ने सभी कॉलेजों की पूरी जानकारी 4 सप्ताह में प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।
एनएमसी की ताज़ा रिपोर्ट के खुलासे
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, एनएमसी ने अब कोर्ट में जो रिपोर्ट दी है, उसके अनुसार 60 मेडिकल कॉलेज (33 सरकारी और 27 निजी) ऐसे हैं जो इंटर्न्स को कोई भी स्टाइपेंड (MBBS Interns Stipend) नहीं दे रहे हैं। यह स्थिति तब है जब ये इंटर्न्स दिन-रात की कड़ी ड्यूटी कर रहे हैं और अस्पतालों में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं।
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निजी कॉलेजों में मनमानी
पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन, 2023 के अनुसार, निजी मेडिकल कॉलेजों को अपने राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के सरकारी कॉलेजों के समान स्टाइपेंड देना अनिवार्य है। लेकिन एमबीबीएस इंटर्नशिप नियम, 2021 में इस विषय पर स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं।
उदाहरण के तौर पर, आंध्र प्रदेश में निजी कॉलेजों द्वारा मात्र 2,000 से 5,000 रुपए प्रतिमाह का स्टाइपेंड दिया जा रहा है, जबकि इन कॉलेजों में ट्यूशन फीस 65 लाख से 1 करोड़ रुपए तक होती है।
तेलंगाना और कर्नाटक में स्थिति और भी गंभीर
तेलंगाना के कई इंटर्न्स ने आरोप लगाया है कि कॉलेज स्टाइपेंड की राशि बैंक में डालते हैं, लेकिन बाद में उसे नकद वापस मांग लेते हैं। कई इंटर्न्स को धमकाया गया है कि अगर वे शिकायत करेंगे तो उनके शैक्षणिक रिकॉर्ड्स को नुकसान पहुंचाया जाएगा।
इतना ही नहीं, इन छात्रों से 36-40 घंटे तक लगातार ड्यूटी करवाई जाती है, फिर भी उन्हें उचित भुगतान नहीं मिलता।
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