Vasectomy Case: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक नसबंदी ऑपरेशन में असफलता के बाद जोड़े को मुआवजा देने के फैसले को पलटते हुए कहा कि इस असफलता का मतलब यह नहीं है कि चिकित्सा लापरवाही हुई है।
कोर्ट ने इस मामले में चिकित्सक को लापरवाही से मुक्त कर दिया। न्यायमूर्ति निधि गुप्ता की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि नसबंदी (Vasectomy) के असफल होने की संभावना दुर्लभ होती है, और इसके आंकड़े 0.3% से 9% तक होते हैं। इस मामले में याचिकाकर्ता इस “दुर्लभ” श्रेणी में आते हैं, जिससे चिकित्सक पर कोई लापरवाही का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि ऑपरेशन से पहले याचिकाकर्ताओं को यह स्पष्ट रूप से सूचित किया गया था कि ऑपरेशन में असफलता की स्थिति में चिकित्सक की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि “यह लापरवाही का मामला नहीं है और याचिकाकर्ताओं ने यह साबित नहीं किया कि डॉक्टर ने कोई चूक की थी।”
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1986 का है Vasectomy मामला
मामले का इतिहास 1986 से जुड़ा हुआ है, जब याचिकाकर्ता ने सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी करवाने (Vasectomy) के लिए आवेदन किया था। ऑपरेशन के बाद उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि अगले तीन महीने तक वे शारीरिक संबंध से बचें और तीन महीने बाद सेमिन चेकअप करवाएं। हालांकि, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी गर्भवती हो गई, और जब उसने चेकअप कराया, तो उसे बताया गया कि ऑपरेशन असफल हो गया था।
मामले को लेकर पहले ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था, जिस पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। राज्य सरकार का कहना था कि ऑपरेशन के बाद मरीज को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए थे, जिन्हें उसने पालन नहीं किया।
याचिकाकर्ता पेश नहीं कर पाया कोई सबूत
हाईकोर्ट ने इस मामले में यह भी पाया कि याचिकाकर्ता ने यह साबित नहीं किया कि उन्होंने ऑपरेशन के बाद डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन किया था, और न ही यह साबित कर पाए कि उनकी पत्नी को गर्भपात के लिए कोई चिकित्सा समस्या थी। कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता अपनी पत्नी के गर्भवती होने को अवांछनीय मानते थे, तो उन्हें गर्भपात करवाने का प्रयास करना चाहिए था, लेकिन इसके लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति निधि गुप्ता की पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि डॉक्टर ने हजारों ऑपरेशन किए थे और नसबंदी की असफलता दर बहुत कम होती है, और याचिकाकर्ताओं का मामला इस दुर्लभ श्रेणी में आता है। इस कारण, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मुआवजा राशि को खारिज कर दिया।
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