SC Notice to NMC: 22 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट की बेंच, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरदेश और न्यायमूर्ति नोंगमाइकाम कपिस्वर सिंग ने केंद्रीय सरकार और नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC) को नोटिस जारी किया। यह नोटिस उन रेजिडेंशियल डॉक्टरों की याचिका पर जारी किया गया, जिन्होंने अपनी “अमानवीय” ड्यूटी घंटों के खिलाफ पीआईएल दायर की थी।
यूनाइटेड डॉक्टर फ्रंट (UDF) ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर कर देश भर में रेजिडेंशियल डॉक्टरों पर लगाए जा रहे “शोषणकारी और असंवैधानिक कार्य परिस्थितियों” को चुनौती दी। याचिका में 1992 के स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश का पालन करने की मांग की गई है, जिसमें कहा गया है कि रेजिडेंशियल डॉक्टरों को प्रतिदिन 12 घंटे और साप्ताहिक 48 घंटे से अधिक काम नहीं करना चाहिए।
UDF के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्या मित्तल ने कहा कि रेजिडेंशियल डॉक्टर अक्सर 70-100 घंटे प्रति सप्ताह काम करने के लिए मजबूर किए जाते हैं, जिससे उन्हें लगातार तनाव, शारीरिक थकावट और मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट का सामना करना पड़ता है। यह न केवल डॉक्टरों के लिए बल्कि मरीजों की सुरक्षा के लिए भी खतरा है।
150 से अधिक छात्रों ने की आत्महत्या
याचिका में यह भी बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद मेडिकल संस्थान अब भी मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं। याचिका में नेशनल टास्क फोर्स की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें पाया गया कि पांच वर्षों में 150 से अधिक मेडिकल छात्रों ने काम से संबंधित तनाव और नींद की कमी के कारण आत्महत्या की।
अधिवक्ता सत्यम सिंह ने कहा कि यह केवल मजदूरी के अधिकार की बात नहीं है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार से जुड़ा मामला है।
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ड्यूटी घंटों में संशोधन पर विचार
UDF ने सुप्रीम कोर्ट से अविलंब हस्तक्षेप की मांग की है। यह याचिका ऐसे समय में दायर की गई है जब केंद्र सरकार और संबंधित पक्षों के बीच रेजिडेंशियल डॉक्टरों की ड्यूटी घंटों को लेकर चर्चा चल रही है।
सरकार 1992 के सेंट्रल रेजिडेंसी स्कीम में बदलाव पर विचार कर रही है। प्रस्तावित बदलाव के तहत डॉक्टरों के ड्यूटी घंटे साप्ताहिक 48 घंटे तय किए जाएंगे। DGHS डॉ. अतुल गोयल ने कहा कि बैठक में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया, लेकिन UDF ने बताया कि नियमों में संशोधन कर 48 घंटे प्रति सप्ताह की सीमा स्पष्ट करने पर सहमति बनी है।
सर्वेक्षण में चौंकने वाले आंकड़े
मेडिकल डायलॉग्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 86% युवा डॉक्टर और मेडिकल छात्र मानते हैं कि अत्यधिक ड्यूटी घंटे उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं और मरीजों की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं।
मार्च 2025 में 1,031 MBBS इंटर्न और PG मेडिकल छात्रों से ऑनलाइन सर्वेक्षण किया गया। इसमें 62% ने बताया कि वे 72 घंटे से अधिक काम करते हैं, जबकि आधे से अधिक को साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिलती। यह आंकड़े देश की मेडिकल संस्थानों में काम के अत्यधिक बोझ को उजागर करते हैं।
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