RTI: जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER) में प्रस्तावित एमबीबीएस-बीएएमएस (MBBS-BAMS) इंटीग्रेटेड कोर्स की घोषणा ने देशभर में हलचल मचाई थी। लेकिन हाल ही में दाखिल हुई सूचना के अधिकार (RTI) याचिकाओं से पता चला है कि इस प्रस्ताव को लेकर कोई ठोस कदम आगे नहीं बढ़ पाया है।
दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की फाइल नोटिंग्स में खुलासा हुआ है कि जनवरी 2024 में ऑरोविले फाउंडेशन ने इस कोर्स की पहल की थी। इसके बाद JIPMER और कुछ आयुर्वेदिक विश्वविद्यालयों ने मिलकर इस कोर्स का प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार किया।
ऑरोविले फाउंडेशन की चिट्ठी से खुला मामला
तमिलनाडु स्थित ऑरोविले फाउंडेशन की सचिव जयन्ती एस. रवि ने स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा था कि फाउंडेशन आधुनिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों को एकीकृत करने पर काम कर रहा है और इस दिशा में कई बैठकों का आयोजन भी किया गया है।
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया था कि JIPMER और आयुर्वेदिक विश्वविद्यालयों के सहयोग से एक ड्राफ्ट करिकुलम (पाठ्यक्रम) तैयार किया गया है, जिसे “दोनों विज्ञान शाखाओं को मिलाकर” और परिष्कृत किया जा रहा है।
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JIPMER के पास नहीं हैं कोई रिकॉर्ड
जब RTI के तहत JIPMER से इस प्रस्ताव से संबंधित दस्तावेज़ और मंत्रालयों के साथ हुई चिट्ठी-पत्री की जानकारी मांगी गई, तो JIPMER ने कहा कि ऐसे कोई रिकॉर्ड उनके पास उपलब्ध नहीं हैं।
JIPMER की ओर से जवाब दिया गया कि अनुरोधित जानकारी/रिकॉर्ड CPIO, अकादमिक सेक्शन के पास उपलब्ध नहीं है, इसलिए इसे RTI अधिनियम 2005 की धारा 2(f) के तहत उपलब्ध नहीं कराया जा सकता।
दो साल से नहीं हुई संयुक्त बैठक
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) अधिनियम, 2019 के अनुसार, NMC, नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन (NCISM) और नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी (NCH) को हर साल कम से कम एक बार संयुक्त बैठक करनी होती है, ताकि चिकित्सा पद्धतियों के बीच तालमेल बैठाया जा सके।
लेकिन RTI से पता चला है कि 2024 और 2025 में ऐसी कोई बैठक नहीं हुई। NMC ने जून 2025 में बताया कि 23 सितंबर 2024 को प्रस्तावित तीसरी बैठक NCISM की अनुपलब्धता के कारण स्थगित हो गई थी और 2025 की बैठक को लेकर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
हेल्थ एक्टिविस्ट की आपत्तियाँ
केरल के स्वास्थ्य कार्यकर्ता डॉ. केवी बाबू, जिन्होंने RTI दाखिल की थी, ने चिंता जताई है कि यह गंभीर सवाल है कि सरकार किस कानून के तहत ऐसा कोर्स शुरू करना चाहती है? NMC को पिछले डेढ़ साल से अंधेरे में क्यों रखा गया? अगर मंत्रालय बिना किसी स्टैच्यूटरी बॉडी से चर्चा किए ऐसे फैसले ले रहा है, तो NMC की भूमिका क्या रह जाती है?
उन्होंने आगे कहा, “विज्ञान को अविज्ञान से मिलाने का काम हमारे देश में राजनीतिक स्तर पर किया जा रहा है, जो चिंताजनक है।”
डॉक्टरों और IMA का विरोध
इससे पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने इस प्रस्ताव को “अवैज्ञानिक” और “दुर्भाग्यपूर्ण” करार देते हुए केंद्र सरकार से इसे वापस लेने की मांग की थी। IMA का कहना है कि अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों को मिलाने का यह कदम जनस्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
कुल मिलाकर, RTI खुलासों से यह साफ हो गया है कि MBBS-BAMS संयुक्त कोर्स का पूरा प्रस्ताव अब भी अधर में लटका हुआ है और स्वास्थ्य मंत्रालय, NMC तथा JIPMER—तीनों के पास इस पर ठोस प्रगति का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।
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