High Court on Medical Insurance: दिल्ली हाईकोर्ट ने अस्पतालों से मरीजों की डिस्चार्ज प्रक्रिया में देरी और बीमा क्लेम को लेकर बढ़ती परेशानियों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को बीमा नियामक संस्था भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI), दिल्ली और भारत की मेडिकल काउंसिल्स के साथ मिलकर एक रेगुलेटरी पॉलिसी और मरीजों के अधिकारों का एक चार्टर विकसित करने की सिफारिश की है।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने एक वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिन्होंने दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल, साकेत के खिलाफ धोखाधड़ी, मानसिक उत्पीड़न और गलत तरीके से पैसे रखने जैसे आरोप लगाए थे।
हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अस्पताल की ओर से कोई आपराधिक अपराध नहीं हुआ है। न्यायमूर्ति ने कहा, “बीमा कंपनियों से मंजूरी मिलने की प्रक्रिया में देरी पर कई मंचों पर नाराज़गी जताई गई है। यह मानसिक उत्पीड़न का कारण हो सकता है लेकिन इसे आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता।”
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Medical Insurance: क्या था मामला?
याचिकाकर्ता, जिन्हें सिस्टिसर्कोसिस नामक बीमारी थी, ने मैक्स हॉस्पिटल में ऑपरेशन करवाया। उनके पास मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस की कैशलेस पॉलिसी थी। हालांकि, अस्पताल ने ऑपरेशन से पहले ₹1,45,000 जमा कराने को कहा और ऑपरेशन के बाद, बीमा क्लेम (Medical Insurance) आने तक उन्हें डिस्चार्ज नहीं किया गया।
अस्पताल ने ₹1,73,906 का बिल बनाया, जिसमें ₹12,495 की छूट बाद में जोड़ी गई। बीमा कंपनी ने ₹1,04,080 का भुगतान किया, बाकी ₹57,332 मरीज से वसूले गए। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यह राशि अनधिकृत रूप से काटी गई और यह धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) और धारा 342 (गलत तरीके से रोकना) के तहत अपराध है।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने डीलक्स रूम का विकल्प चुना था, जबकि बीमा केवल स्टैंडर्ड रूम के लिए था। बीमा कंपनी से ₹75,000 की ही प्री-ऑथराइजेशन आई थी, इसलिए अस्पताल ने बाकी राशि मांगी। कोर्ट ने कहा, “यह अनुचित लग सकता है लेकिन इसे धोखाधड़ी नहीं कहा जा सकता।”
डिस्चार्ज में देरी को बीमा कंपनी से मंजूरी आने में देरी बताया गया। कोर्ट ने कहा, “यह जानबूझकर रोकना नहीं बल्कि प्रक्रियागत देरी थी।”
अंततः, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी और कहा, “मैक्स हॉस्पिटल ने कोई धनराशि का दुरुपयोग नहीं किया है, और धारा 406 के तहत कोई अपराध नहीं बनता।”
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