Misleading Medical Ads Case: पारंपरिक चिकित्सा के विज्ञापनों में भ्रामक दावों को लेकर दायर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना पूर्व आदेश वापस ले लिया, जिसके तहत आयुर्वेद, सिद्धा और यूनानी दवाओं के विज्ञापन से पहले लाइसेंसिंग प्राधिकरण की मंजूरी अनिवार्य थी।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा, “याचिका में मांगी गई राहत पहले ही मिल चुकी है, ऐसे में इसे आगे सुनने का कोई उद्देश्य नहीं है। हालांकि, किसी भी पक्ष को नियम 170 की समाप्ति पर आपत्ति हो तो वह कानून के अनुसार उचित मंच पर जा सकता है।”
Misleading Medical Ads Case: नियम 170 की पृष्ठभूमि
1 जुलाई 2024 को आयुष मंत्रालय ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम 170 को हटा दिया था। यह नियम आयुर्वेद, सिद्धha और यूनानी दवाओं के विज्ञापनों के लिए राज्य की लाइसेंसिंग प्राधिकरण से पूर्व-अनुमोदन को अनिवार्य बनाता था।
अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने इस हटाने पर रोक लगाते हुए नियम 170 को प्रभावी बनाए रखा था, ताकि मामले के दौरान कड़ी निगरानी बनी रहे।
Misleading Medical Ads Case: सुनवाई के दौरान मुख्य तर्क
- अमिकस क्यूरी शादन फरासत ने कहा कि नियम हटाए जाने के बाद भी कई राज्यों ने इसे लागू किया।
- न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने सवाल किया कि केंद्र द्वारा हटाए गए नियम को राज्य कैसे लागू कर सकते हैं।
- न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि अदालत किसी समाप्त नियम को पुनर्जीवित नहीं कर सकती।
- अधिवक्ता प्रणव सचदेवा ने पुराने आदेश को बनाए रखने का आग्रह करते हुए कहा कि भ्रामक विज्ञापन मरीजों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि भ्रामक विज्ञापनों पर रोक के लिए पहले से वैधानिक और स्व-नियामक ढांचा मौजूद है।
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Misleading Medical Ads Case: मार्च 2025 के निर्देश
26 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 को प्रभावी रूप से लागू करने के निर्देश दिए थे, जिनमें शामिल थे:
- अधिनियम के तहत धारा 8 के अनुसार गजटेड अधिकारियों की नियुक्ति
- शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना
- पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा जनजागरूकता अभियान
- केंद्र द्वारा शिकायतों की निगरानी के लिए डैशबोर्ड तैयार करना
Misleading Medical Ads Case: मामला कैसे शुरू हुआ
IMA ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ आधुनिक चिकित्सा को बदनाम करने वाले विज्ञापनों पर याचिका दायर की थी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे विज्ञापनों पर अस्थायी रोक लगाई, नियामकों की निष्क्रियता पर सवाल उठाए, और बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अवमानना कार्यवाही भी शुरू की। बाद में दोनों की माफी स्वीकार कर मामला समाप्त कर दिया गया।
आगे का रास्ता
अब सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2024 का अंतरिम आदेश समाप्त करते हुए कहा कि यदि किसी पक्ष को नियम 170 की समाप्ति से आपत्ति है, तो वह हाईकोर्ट या उचित कानूनी मंच पर जा सकता है। सभी पक्षों को अपने तर्क उचित कार्यवाही में प्रस्तुत करने की छूट दी गई है।
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