Sickle Cell Anemia: सिकल सेल एनीमिया के उन्मूलन के लिए सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए जांच किट की कीमत 50 रुपए से भी कम कर दी है। यह पहल राष्ट्रीय सिकल सेल उन्मूलन कार्यक्रम (National Sickle Cell Elimination Programme) के तहत की जा रही है, जिसके अंतर्गत देशभर में 7 करोड़ लोगों की जांच का लक्ष्य है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के अंतर्गत आने वाले मुंबई स्थित राष्ट्रीय प्रतिरक्तविज्ञान संस्थान (NIIH) और नागपुर स्थित हीमोग्लोबिनोपैथी अनुसंधान प्रबंधन एवं नियंत्रण केंद्र (CRHCM) ने पिछले 6 महीनों में 35 पॉइंट-ऑफ-केयर जांच किट्स का परीक्षण कर मान्यता दी है।
NIIH के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रभाकर केदार ने बताया कि शुरुआती तौर पर एक किट की कीमत 350 रुपए बताई गई थी। स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी आकलन (Health Technology Assessment) के बाद यह तय किया गया कि यह किट्स 100 रुपए या उससे कम कीमत पर खरीदी जानी चाहिए।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) ने इसके बाद राज्यों को निर्देश दिए कि अधिकतम 100 रुपए में ही किट्स खरीदी जाएं।
1857 करोड़ रुपए की बचत
मेडिकल डायलॉग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी टेंडर प्रक्रिया के जरिए प्रतिस्पर्धी खरीद प्रणाली से किट्स की कीमत 82 रुपए तक आ गई, जिससे सरकार को 1857 करोड़ रुपए की भारी बचत हुई। इसके बाद NIIH ने नए किट्स का परीक्षण कर वैधता दी और निर्माता ने इन्हें 50 रुपए से कम कीमत पर उपलब्ध कराने पर सहमति जताई।
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तीव्र परीक्षण और स्वीकृति
CRHCM के वैज्ञानिक डॉ. नागा मुरलीधर ने बताया कि अब तक 35 किट्स को मंजूरी दी जा चुकी है, जिनमें फिंगर-प्रिक टेस्ट, लैब आधारित टेस्ट और जेनेटिक स्तर पर पहचान करने वाले मॉलिक्यूलर टेस्ट शामिल हैं। इन किट्स की त्वरित परीक्षण प्रक्रिया के चलते, देश के दूरदराज और जनजातीय क्षेत्रों में भी सटीक और गुणवत्तापूर्ण जांच सुविधाएं तेजी से उपलब्ध हो सकेंगी।
Sickle Cell Anemia: भारत में गंभीर चुनौती
डॉ. केदार के अनुसार कि भारत में 2 करोड़ से अधिक लोग सिकल सेल जीन (Sickle Cell Anemia) के वाहक हैं और कुछ क्षेत्रों में हर 70वें जन्म में यह बीमारी पाई जाती है। उन्होंने बताया कि यह एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जो बच्चों में प्रारंभिक अवस्था में ही दिखाई देता है और इसके लक्षण जीवनभर पीड़ा देते हैं।
बीमारी के सामाजिक और मानसिक प्रभाव
सिकल सेल रोग (Sickle Cell Anemia) से पीड़ित लोगों को न केवल शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ती है, बल्कि उन्हें समाज में भेदभाव, मिथक और उपेक्षा का भी सामना करना पड़ता है।
डॉ. केदार के अनुसार, लोग इस बीमारी को अभिशाप या छूआछूत समझते हैं, जिससे मरीजों को सामाजिक अलगाव, विवाह में कठिनाई, नौकरी और पढ़ाई में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। बच्चों को स्कूल में तंग किया जाता है और वयस्कों को मानसिक अवसाद, थकान, और आत्म-सम्मान की समस्याएं होती हैं।
समाधान: संवेदनशील स्वास्थ्य नीति और जागरूकता
डॉ. केदार ने सुझाव दिया कि इस रोग (Sickle Cell Anemia) से प्रभावी लड़ाई के लिए केवल चिकित्सा सुविधाएं नहीं, बल्कि सामाजिक सहयोग भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सरकारी हस्तक्षेप में कानूनी संरक्षण, बीमा कवरेज और कल्याणकारी योजनाएं भी शामिल होनी चाहिए ताकि रोगियों का जीवनस्तर बेहतर हो सके।
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