Doctors Protection Law: स्वास्थ्य कर्मियों पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए मॉडल कानून बनाने का प्रस्ताव राष्ट्रीय टास्क फोर्स (NTF) द्वारा स्वीकार तो किया गया, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
हाल ही में एक आरटीआई के जवाब में यह खुलासा हुआ है। यह टास्क फोर्स सुप्रीम कोर्ट द्वारा डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा (Doctors Protection Law) सुनिश्चित करने के लिए गठित की गई थी। टास्क फोर्स ने केंद्र सरकार से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक मॉडल कानून का मसौदा तैयार करने का आग्रह किया था।
मॉडल कानून का मसौदा तैयार करने का निर्देश
5 सितंबर 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय टास्क फोर्स के अंतर्गत एक उप-समूह का गठन किया, जिसमें डीजीएमएस (नेवी) को संयोजक नियुक्त किया गया। इस उप-समूह का उद्देश्य सभी राज्यों में कानूनी ढांचे को मजबूत करना था। लेकिन, गृह मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में स्पष्ट किया कि इस दिशा में अब तक कोई ठोस विकास नहीं हुआ है। यह जानकारी केरल के स्वास्थ्य कार्यकर्ता डॉ. केवी बाबू द्वारा दायर आरटीआई से सामने आई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का बयान
इस साल की शुरुआत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने संसद में स्पष्ट किया था कि मौजूदा कानूनों में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा (Doctors Protection Law) के पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। इसके बावजूद डॉ. बाबू ने 29 दिसंबर 2024 और 30 मार्च 2025 को गृह मंत्रालय में आरटीआई दाखिल कर इस कानून के मसौदे की जानकारी मांगी थी।
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आरटीआई में क्या मिला जवाब?
फरवरी 2025 में गृह मंत्रालय ने जवाब में बताया कि राष्ट्रीय टास्क फोर्स की पहली बैठक के बाद बीपीआरएनडी को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मॉडल कानून (Doctors Protection Law) का मसौदा तैयार करने का अनुरोध किया गया था। लेकिन, अब तक इस संबंध में कोई आधिकारिक सूचना या संचार राज्यों को नहीं भेजा गया है।
केंद्र सरकार का रुख
डॉ. बाबू ने जानकारी दी कि 2019 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय कानून का प्रस्ताव रखा था। लेकिन सितंबर 2024 में आरटीआई के जवाब में केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए अलग से कोई केंद्रीय कानून नहीं बनाया जाएगा।
आरजी कर मेडिकल कॉलेज की घटना से प्रेरित
राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक पीजी छात्रा डॉक्टर की दुष्कर्म और हत्या के बाद स्वप्रेरणा से किया था। 10 सदस्यीय इस टास्क फोर्स में नेवी की वाइस एडमिरल अरति सरीन, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के चेयरमैन डॉ. डी. नागेश्वर रेड्डी, एम्स-दिल्ली के निदेशक डॉ. एम. श्रीनिवास और निमहांस-बेंगलुरु की निदेशक डॉ. प्रतिमा मूर्ति शामिल हैं।
Doctors Protection Law: टास्क फोर्स का निष्कर्ष
टास्क फोर्स ने बताया कि राज्य स्तर के कानून स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं और गंभीर मामलों को ‘भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS)’ के तहत निपटाया जा सकता है। इसके चलते एक अलग केंद्रीय कानून की आवश्यकता नहीं है।
डॉ. बाबू ने इस पूरे मामले पर निराशा जताई और उम्मीद जताई कि गृह मंत्रालय जल्द ही मॉडल कानून की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा।
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